आधी हकीकत आधा फ़साना

कुछ बातें जो कभी याद आ गयी और कभी गढ़ दी.... आप बीती और किस्सों से भरी ये दुनिया हैं मेरी...

Sunday, December 11, 2022

अधूरापन

वो दिखी मुझे और अपने आप ही एक मुस्कुराहट फैल गई मेरे आंखों में। वो मेरे आंखों में कुछ ढूंढ रही थी। ढूंढते- ढूंढते वो भी मुस्कुराने लगी, शायद उसे कुछ मिल गया था। उसकी खुशी देख कर खुश होने के बजाए मै बेचैन हो गया, बहुत ज्यादा बेचैन। बेचैनी शायद उस चीज के बारे में जानने की थी जो उसे मिल गया था। पूछना चाहा पर पूछने के हक जितना मैं उसे जानता नहीं था। पल बीत रहा था पर कट नहीं रहा था। पलो के बीतने कटने के उधेड़बुन में मेरी बेचैनी पर से मेरा काबू छूट चुका था। मेरा बहुत मन कर रहा था मैं जाकर उससे उसकी मुस्कुराहट का कारण पूछूं। डरता था के जवाब देने से बचने के लिए कहीं वो मुस्कुराहट रोक न ले। हंसते हंसते वो एकदम से सन्न हो गई, मानो जैसे कुछ ऐसा याद आ गया हो जिसे उसने अपनी आधी ज़िन्दगी देकर भुलाया हो। उसका सन्न चेहरा देख कर मैं हसने लगा और जितना मैं हंसता गया उतनी ही उसकी आंखे बोझिल होती गई। पता नहीं क्यूं मैं बहुत ज्यादा हल्का महसूस करने लगा था। अब वो सवाल पूछने वाली बेचैनी भी नहीं बची थी मेरे अंदर। अचानक वो ओझल हो गई और जाते जाते एक अधूरापन दे गई। 

पूर्णविराम

कुछ बातों की हद्द नहीं होती... और कुछ बातें हद्द तक पहुंच नहीं पाती... दोनों ही बातों का कोई मतलब नहीं होता क्योंकि दोनों ही बातें अपने आप में पूरी नहीं होती... दोनों में पूर्णविराम की कमी होती हैं।

पूर्णविराम, कितना ज़रूरी होता है इस ज़िन्दगी की कहानी में... यह उस घर की तरह होता है जहां बैठ कर यह सोचा जा सकता है कि ज़िन्दगी की इस कहानी का अगला वाक्य क्या होगा या अगली कहानी क्या लिखी जाएगी। 

मुझे लगता है कि पूर्णविराम किसी वाक्य का अंत नहीं बल्कि एक नए वाक्य की शुरुआत हैं।

Thursday, February 20, 2020


ॐ 


तेरा मंगल, तेरा मंगल, तेरा मंगल होय रे
May you be blessed
सब का मंगल, सब का मंगल, सब का मंगल होय रे
May all be blessed

जिस गुरुदेव ने धर्म दिया हैं, उनका मंगल होय रे
May the one who showed me the path of Dharma be blessed
जिस जननी ने जन्म दिया हैं, उस का मंगल होय रे
May the one who gave birth to me be blessed

पाला पोसा और बढ़ाया, उस पिता का मंगल होय रे
May the one (father) who took care of all my needs be blessed
इस जगत के सब दुखियारे, प्राणी का मंगल होय रे
May all the suffering ones be blessed

जल मे, स्थल में  और गगन मे, सबका मंगल होय रे
May all beings in water, on earth and in the sky be blessed
अंतर मन के गांठे टूटे, अंतर निर्मल होय रे
May my inner conflicts be resolved, and may I be purified

राग, द्वेष और मोह मिट जाए, क्षीण समाधी होय रे
May all be free of cravings and aversions, and may inner peace prevail
शुद्ध धर्म धरती पर जागे, पाप पराजित होय रे
May true Dharma light the earth, and may spiritual darkness dissolve

इस धरती के तर तिन मे, कण कण मे धर्म समोए रे
May Dharma abide in each and every atom of the earth
शुद्ध धर्म जन जन मे जागे, घर घर शांति समोए रे
May Dharma awaken in each being, and may each home be filled with peace

तेरा मंगल, मेरा मंगल, सब का मंगल होय रे
May you be blessed, may I be blessed, may all be blessed

Tuesday, November 5, 2019

सपना, हकीकत और कहानी...

सपने और हक़ीकत के बीच की एक कहानी चाहिए। कहानी जो जी तो जा सकती हो पर लम्बी न हो। सपनो के आस पास रहे पर सच्ची भी हो। ऐसी कहानी की तलाश में जीते जा रहा हूँ।  उम्मीद है पर वक़्त नहीं हैं।  हौसला हैं पर patience नहीं हैं। नज़र के सामने साथ साथ चल रहा है पर हाथ की पहुँच से बहुत दूर है। पकड़ने की जितनी भी कोशिश करो वो उतना और दूर नज़र आता हैं, मानो जैसे मैं एक ट्रेन में बैठा बाहर के नज़ारों  को अपने साथ चलता देख खुश हो रहा हूँ पर अंदर का सच जानता हूँ कि दरअसल वो सब पीछे छूट रहा हैं। इतना पीछे के उन नज़ारो को जीने के लिए फिर से पीछे जाकर शुरू से रास्ता तय करना होगा।  ऐसी कहानी डरा देती हैं, नहीं चाहता हूँ ऐसी कहानी मैं।  

कभी कभी अपने ही चाहत पर सवाल कर मैं शून्य में चला जाता हूँ। लेकिन शून्य भी अपने आप में एक शुरुआत ही तो हैं।  इस के आगे ही तो सारी गिनती शुरू होती हैं।  यह मालूम होने के बावजूद मैं शून्य का शोक क्यों मनाने लगता हूँ। शायद बारंबार शून्य  पर आना नहीं पसंद मुझे या शून्य को छोड़ अगले नंबर पर जाने की इच्छा बहुत पीछे छूट गई उन नज़ारों की तरह। 

शून्य पर खड़े खड़े सपने और हकीकत के बीच की कहानी की तलाश अब भी जारी हैं। 

Monday, January 28, 2019

एक परिंदा हूं मैं...


एक परिंदा हूं मैं,
हां ज़िंदा हूं मैं।
उड़ने को हूं पंख पसारे,
कब से खड़ा शर्मिंदा हूं मैं।

बोझ तले दबा हूं मैं,
रूई का समा हूं मैं।
जो थोड़ी हवा चल गयी, 
बोझ से निकल गयी
बन बादल बरस जाऊंगा मैं,
हर बोझ फिर डुबाउंगा मैं।

उस मोड़ पर खड़ा हूं मैं,
हर हार से लडा़ हूं मैं।
जीत को गले लगाने,
उसकी चौखट पर अड़ा हूं मैं।

                         - राजीव  झा 





Wednesday, October 17, 2018

आ जाती तुम तो...

आ जाती तुम तो शायद इस अकेलेपन से नाता टूट जाता... थोड़ी देर के लिए ही सही पर जुड़े होने का एहसास तो हो जाता... जानती हो अकेले रहने का अपना एक स्वाद होता हैं... पर ये स्वाद मीठी कम और खट्टी ज्यादा हैं... क्या तुम्हे याद हैं कि मुझे खट्टा बिलकुल पसंद नहीं... पर अब धीरे-धीरे मैंने खट्टे को अपनाना शुरू कर दिया हैं... कहते हैं ना बैरी से दोस्ती कर लो तो वो भी दोस्त बन जाता हैं... असल में हम अपने मन को मना लेते हैं की वो हमारा दोस्त बन गया पर होता तो वह खट्टा ही हैं... पर छोडो इन बातों को, चलो तुम्हारी बात करते हैं... 

क्या अब भी तुम उसी तरह आईने में देख अपनी शकल  बिगाड़ा करती हो... मैंने शायद तुमसे कभी कहा नहीं पर जितना तुम शकल बिगाड़ती उतना ही मुझे तुम पर प्यार आता... तुम्हारे जाने के बाद मैं घंटो तक आईने में तुम्हे ढूंढा करता था... आ जाती तुम तो शायद आईने में तुम्हारी बिगड़ी हुई शकल ढूंढ लेता...  क्या अब भी तुम exam से उसी तरह डरती हो जैसे पहले डरा करती थी, याद हैं तुम्हे तुम exam हॉल तक मेरा हाथ नहीं छोड़ती थी और मैं तुमसे शर्त लगाया करता था के तुम distinction लाओगी... आ जाती तुम तो आज तुम्हारे distinction की पार्टी कर लेता... वो दुपट्टा याद हैं तुम्हे जो बस से उतरते हुए दरवाज़े के कील में अटक कर फट  गया था... वही, जिसे तुमने फिर अपने बैग में रख लिया था... दरअसल वो खोया नहीं था बल्कि उसे मैंने तुम्हारे बैग से निकाल लिया था... ना जाने कितनी शामें तुमने उस दुपट्टे में लिपट कर मेरे साथ बिताई हैं... आ जाती तुम तो मैं वो दुपट्टा फिर से तुम्हारे बैग में रख देता... तुम्हारे हाथों की वो maggi  का स्वाद आज भी मेरे ज़बान पर हैं... पर अब मैंने maggi  खाना बंद कर दिया हैं... आ जाती तुम तो शायद वो स्वाद मिटाने की तरकीब तुमसे पूछ लेता... किसे भूलू और किसे याद रखू , के कितने सारे लम्हे हैं तुम्हारे इस घर के हर कोने में... आ जाती तुम तो सारे लम्हे तुम्हे लौटा देता... 

एक बार आकर चली जाओ के मैं तुम्हारे जाते हुए कदमो से अपने लिए कुछ साँसे ले सकू क्यूंकि ये खट्टा मुझे मरने नहीं दे रहा हैं और वो लम्हा मुझे जीने नहीं दे रहा... उन यादों लम्हो को मिटाने भूलाने की तरकीब भी तुमसे सीख लेता... आ जाती तुम तो...

Monday, September 10, 2018

मध्यांतर...


हम अंत की तलाश में मध्यांतर तक ही पहुंच पाते हैं।
अंत क्या है किसी को पता नहीं, किसी ने देखा नहीं। सबके अपने अनुभव हैं अंत को लेकर। 
हॉं! पर ये अनुभव सिर्फ देखें हुए हैं ना की भुगतें हुए। 
देखें हुए अनुभव में थोड़ा बहुत झूठ भी होता है। शायद बहुत ज्यादा झूठ होता है। 
तो सच क्या है अंत का? किसे पता है यह सच?
कोई तो होगा जिसे भूगता हुआ सच पता हो या ये जीवन ही सारा झूठ है।

Friday, August 17, 2018

मौत...





मौत से अब दुखी होने लगा हूँ मैं... मैं जब भी अब किसी के जनाज़े या शोक सभा में जाता हूँ तो अंदर ही अंदर बहुत रोने लगता हूँ... कभी कभी आँसू बाहर भी छलक जाते है... पता नहीं क्यों और कैसे ये सिलसिला शुरू हुआ... ऐसा सिर्फ जानने वालो की मौत पे नहीं बल्कि अनजान मृत शरीर देख कर भी अनायास ही रो देता हूँ... ये ज़िन्दगी से प्यार है या मौत का खौफ़, पता नहीं पर ये अभी कुछ दिनों से ही शुरू हुआ है और ये मुझे चिंता में डाल रहा है... कहीं ये मेरे गुमनामी में मर जाने का खौफ़ तो नहीं... 

मुझे बचपन से ही गुमनाम मौत मरने से डर लगता था... गुमनाम मौत सोचना भी मेरे शरीर में सिहरन पैदा करता है... दम घुटता है ऐसे सोच से... पर वक़्त और हालात उसी तरफ लिए जाते रहे है... शायद पहले मैं डरने का नाटक करता था और अब उस नाटक ने जड़ पकड़ लिया हो जैसे... इस गुमनामी से बाहर निकलने की जब भी कोई कोशिश करने की सोचता हूँ तो सामने से किसी अपने पराये का जाता हुआ जनाज़ा दिख जाता है और फिर से एक बार सारा डर बाहर निकल आता है आंखों से... 

Monday, February 27, 2017

Tum Miley...


Kuch aise miley hum ke tum taqdeer ban gayi, lakeer ban gayi, 
samaa gayi rago mein iss tarah ke meri hi tasveer ban gayi... 
Wo tere haathon ka mere haathon ko kas kar thaamna 
jaise mere siwa koi dooja nahi iss duniya mein...
Wo tera honthon ka mere honthon se milna 
ki zindagi chakh li ho jaise... 
Kaise ek doosre mein samaate chale jaana 
jaise ab koi aur manzil hi nahi paane ke liye...

Udhaar ki Hassi

Ek hassi rehti thi mere makaan mein,
Pata nahi kaha hain, kahi bhool aaya main, 
ya shaayad kahi chhod aaya... 
Yaad aaya! main na toh usey kahi bhoola na hi chhod aaya...
Main toh de aaya, de aaya usey kyunki ab wo mere kaam ki nahi thi...
Makaan bhi gir gaya tha... 
Koi nahi tha jo usey dekhta, uska khayal rakhta... 
Fir rehne ke liye na toh makaan tha na hi koi wajah...
De aaya iss liye... Shaayad uske kuch kaam aa jaaye...