सपना, हकीकत और कहानी...
सपने और हक़ीकत के बीच की एक कहानी चाहिए। कहानी जो जी तो जा सकती हो पर लम्बी न हो। सपनो के आस पास रहे पर सच्ची भी हो। ऐसी कहानी की तलाश में जीते जा रहा हूँ। उम्मीद है पर वक़्त नहीं हैं। हौसला हैं पर patience नहीं हैं। नज़र के सामने साथ साथ चल रहा है पर हाथ की पहुँच से बहुत दूर है। पकड़ने की जितनी भी कोशिश करो वो उतना और दूर नज़र आता हैं, मानो जैसे मैं एक ट्रेन में बैठा बाहर के नज़ारों को अपने साथ चलता देख खुश हो रहा हूँ पर अंदर का सच जानता हूँ कि दरअसल वो सब पीछे छूट रहा हैं। इतना पीछे के उन नज़ारो को जीने के लिए फिर से पीछे जाकर शुरू से रास्ता तय करना होगा। ऐसी कहानी डरा देती हैं, नहीं चाहता हूँ ऐसी कहानी मैं।
कभी कभी अपने ही चाहत पर सवाल कर मैं शून्य में चला जाता हूँ। लेकिन शून्य भी अपने आप में एक शुरुआत ही तो हैं। इस के आगे ही तो सारी गिनती शुरू होती हैं। यह मालूम होने के बावजूद मैं शून्य का शोक क्यों मनाने लगता हूँ। शायद बारंबार शून्य पर आना नहीं पसंद मुझे या शून्य को छोड़ अगले नंबर पर जाने की इच्छा बहुत पीछे छूट गई उन नज़ारों की तरह।
शून्य पर खड़े खड़े सपने और हकीकत के बीच की कहानी की तलाश अब भी जारी हैं।
शून्य पर खड़े खड़े सपने और हकीकत के बीच की कहानी की तलाश अब भी जारी हैं।
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