एक परिंदा हूं मैं...
एक परिंदा हूं मैं,
हां
ज़िंदा हूं मैं।
उड़ने
को हूं पंख पसारे,
कब से खड़ा शर्मिंदा
हूं मैं।
बोझ
तले दबा हूं मैं,
रूई
का समा हूं मैं।
जो थोड़ी हवा चल गयी,
बोझ
से निकल गयी
बन बादल बरस जाऊंगा
मैं,
हर बोझ फिर डुबाउंगा
मैं।
उस मोड़ पर खड़ा
हूं मैं,
हर हार से लडा़
हूं मैं।
जीत
को गले लगाने,
उसकी
चौखट पर अड़ा हूं
मैं।
- राजीव झा
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