पूर्णविराम
कुछ बातों की हद्द नहीं होती... और कुछ बातें हद्द तक पहुंच नहीं पाती... दोनों ही बातों का कोई मतलब नहीं होता क्योंकि दोनों ही बातें अपने आप में पूरी नहीं होती... दोनों में पूर्णविराम की कमी होती हैं।
पूर्णविराम, कितना ज़रूरी होता है इस ज़िन्दगी की कहानी में... यह उस घर की तरह होता है जहां बैठ कर यह सोचा जा सकता है कि ज़िन्दगी की इस कहानी का अगला वाक्य क्या होगा या अगली कहानी क्या लिखी जाएगी।
मुझे लगता है कि पूर्णविराम किसी वाक्य का अंत नहीं बल्कि एक नए वाक्य की शुरुआत हैं।
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