आ जाती तुम तो...
आ जाती तुम तो शायद इस अकेलेपन से नाता टूट जाता... थोड़ी देर के लिए ही सही पर जुड़े होने का एहसास तो हो जाता... जानती हो अकेले रहने का अपना एक स्वाद होता हैं... पर ये स्वाद मीठी कम और खट्टी ज्यादा हैं... क्या तुम्हे याद हैं कि मुझे खट्टा बिलकुल पसंद नहीं... पर अब धीरे-धीरे मैंने खट्टे को अपनाना शुरू कर दिया हैं... कहते हैं ना बैरी से दोस्ती कर लो तो वो भी दोस्त बन जाता हैं... असल में हम अपने मन को मना लेते हैं की वो हमारा दोस्त बन गया पर होता तो वह खट्टा ही हैं... पर छोडो इन बातों को, चलो तुम्हारी बात करते हैं...
क्या अब भी तुम उसी तरह आईने में देख अपनी शकल बिगाड़ा करती हो... मैंने शायद तुमसे कभी कहा नहीं पर जितना तुम शकल बिगाड़ती उतना ही मुझे तुम पर प्यार आता... तुम्हारे जाने के बाद मैं घंटो तक आईने में तुम्हे ढूंढा करता था... आ जाती तुम तो शायद आईने में तुम्हारी बिगड़ी हुई शकल ढूंढ लेता... क्या अब भी तुम exam से उसी तरह डरती हो जैसे पहले डरा करती थी, याद हैं तुम्हे तुम exam हॉल तक मेरा हाथ नहीं छोड़ती थी और मैं तुमसे शर्त लगाया करता था के तुम distinction लाओगी... आ जाती तुम तो आज तुम्हारे distinction की पार्टी कर लेता... वो दुपट्टा याद हैं तुम्हे जो बस से उतरते हुए दरवाज़े के कील में अटक कर फट गया था... वही, जिसे तुमने फिर अपने बैग में रख लिया था... दरअसल वो खोया नहीं था बल्कि उसे मैंने तुम्हारे बैग से निकाल लिया था... ना जाने कितनी शामें तुमने उस दुपट्टे में लिपट कर मेरे साथ बिताई हैं... आ जाती तुम तो मैं वो दुपट्टा फिर से तुम्हारे बैग में रख देता... तुम्हारे हाथों की वो maggi का स्वाद आज भी मेरे ज़बान पर हैं... पर अब मैंने maggi खाना बंद कर दिया हैं... आ जाती तुम तो शायद वो स्वाद मिटाने की तरकीब तुमसे पूछ लेता... किसे भूलू और किसे याद रखू , के कितने सारे लम्हे हैं तुम्हारे इस घर के हर कोने में... आ जाती तुम तो सारे लम्हे तुम्हे लौटा देता...
एक बार आकर चली जाओ के मैं तुम्हारे जाते हुए कदमो से अपने लिए कुछ साँसे ले सकू क्यूंकि ये खट्टा मुझे मरने नहीं दे रहा हैं और वो लम्हा मुझे जीने नहीं दे रहा... उन यादों लम्हो को मिटाने भूलाने की तरकीब भी तुमसे सीख लेता... आ जाती तुम तो...